Bhagwan Shiv ji Ne dharan kiye zehreelay Jeev jantu aur bhasma iska kya Karan hai. भगवान शिव ने धारण किए जहरीले जीव जंतु और भस्म इसका क्या कारण है।

Bhagwan Shiv ji Ne dharan kiye zehreelay Jeev jantu aur bhasma iska kya Karan hai. शिव जी ने उन सभी को शरण दी है, जिनसे इस दुनिया ने घृणा की है।



Bhagwan Shiv ने संसार में व्याप्त उन सभी कड़वाहट और नकारात्मक चीजों का सेवन किया है। संसार में व्याप्त सारी बुराइयों को अपने भीतर ग्रहण किया है, जिससे संसार में नकारात्मक शक्ति और बुराइयों से अपने भक्तों को बचाया जा सके।
Bhagwan Shiv ji Ne dharan kiye zehreelay Jeev jantu aur bhasma iska kya Karan hai.
Bhagwan Shiv ji 

Shiv ji ने अपने शरीर पर सर्पों की माला और जहरीले पदार्थों का सेवन किया।

सर्पों की माला को Shiv ji ने अपने गले में धारण कि सर्पों से मनुष्य डरते हैं, और उन्हें अपने से दूर ही रखते हैं, क्योंकि सर्प जहरीले होते हैं। जिससे मनुष्य के जीवन को खतरा हो सकता है।

इसी कारण Bhagwan Shiv ने उन्हें अपने गले में धारण किया है। भगवान शिव अपने कानों में बिच्छू को धारण करते हैं, यह भी बेहद ही जहरीले होते हैं। भगवान शिव के आसपास भूत-प्रेतों की टोली होती है, जिन जीव-जंतुओं से मनुष्य दूर रहता है, जिन्हें वह अपने पास नहीं रखना चाहता।

उन सभी जीव जंतु का भगवान शिव पालन करते हैं, उन्हें अपने पास स्थान देते हैं। यही कारण हो सकता है कि भगवान शिव ने संसार की उन वस्तुओं या जीवो को धारण किया, जिनका मनुष्य ने तिरस्कार किया।


Bhagwan Shiv क्यों धारण करते हैं श्मशान की भस्म।

राजा दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान होने के कारण, माता सती स्वयं को राजा दक्ष द्वारा किए जा रहे यज्ञ में भस्म कर लेती हैं। तब भगवान शिव क्रोधित होकर राजा दक्ष की गर्दन काट देते हैं। भगवान शिव माता सती के शव को लेकर सारे ब्रह्मांड में विचरण करते हैं। माता सती के शरीर से निकलने वाली भस्म को भगवान शिव अपने शरीर पर धारण करते हैं, यह प्रथा तभी से चली आ रही है, भगवान शिव पर भस्म चढ़ाई जाती है।


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Bhagwan Shiv ने सृष्टि को बचाने के लिए हलाहल विष को सेवन किया था।

देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, उस समुद्र मंथन से 14 रत्नों में से एक विष भी था, जिसको हलाहल विष के नाम से जाना जाता है। देवताओं और राक्षसों ने उस विष को ग्रहण नहीं किया, तब देवों के देव महादेव ने उस विष को अपने कंठ में धारण किया।

इस विष में इतनी गर्मी थी कि भगवान शिव के अलावा इस ब्रम्हांड में उस विष को कोई और धारण नहीं कर सकता था। इस सृष्टि और सभी जीव जंतुओं को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण किया। तभी से भगवान शिव नीलकंठ नाम से जाने जाते हैं, उस विष के प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीले रंग का हो गया।

Bhagwan Shiv पर भांग धतूरा बेल क्यों चढ़ाया जाता है

भगवान शिव ने जब हलाहल विष का सेवन किया था, तब उनका शरीर व्याकुल होने लगा। उस विष के प्रभाव से बचने के लिए अश्विनी कुमारों ने इन औषधियों से शिवजी की व्याकुलता को दूर किया था। तभी से भगवान शिव पर भांग, धतूरा, बेल आदि चढ़ाया जाता है।

Bhagwan Shiv के तीनों नेत्र किसके प्रतीक हैं

पहला नेत्र ब्रह्मा जो सृष्टि का सृजन करते हैं, दूसरा नेत्र विष्णु जो सृष्टि का पालन करते हैं, तीसरा नेत्र शिव जो सृष्टि का संहार करते हैं।

जब तीसरा नेत्र खुलता है तो केवल और केवल विनाश होता है, जैसे कामदेव को भस्म किया था, भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से।

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Bhagwan Shiv की जटाओं पर माता गंगा का वास है।

भगवान शिव की जटाओं में मां गंगा विराजमान है और मां गंगा को विराजमान करने की ताकत अन्य किसी देवताओं में नहीं है। केवल उनको देवों के देव महादेव ही धारण कर सकते थे।

Bhagwan Shiv अपने मस्तक पर चंद्र को क्यों धारण करते हैं।

Bhagwan Shiv के सिर पर चंद्र विराजमान जो शीतलता का प्रतीक है, भगवान शिव शेर की खाल के वस्त्र पहनते हैं, भगवान शिव के पूरे शरीर में जिन जिन जीव और वस्तुओं को धारण किया है। उसका कोई ना कोई मतलब है।

ऐसे परम आनंद को देने वाले Bhagwan Shiv को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं को उन पर चढ़ाना चाहिए और उन वस्तुओं को फिर दान करना चाहिए। जिससे उनका उपयोग जरूरतमंद कर सकें।

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