Lohri Ka Tyohar Kyon Manaya Jata Hai Katha, Kahaniya Aur Mahatva (लोहड़ी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है कथा-कहानियां व महत्व)
Lohri Ka Tyohar Kyon Manaya Jata Hai aayiye Jante Hain Indiaskk.com par Katha, Kahaniya Aur Mahatva. Lohri (लोहड़ी) उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह मकर संक्रांति के 1 दिन पहले मनाया जाता है। इस त्यौहार में सभी लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बनाकर लोकगीत गाते हैं। रेवड़ी, मूंगफली, मक्के की लाई अादि खाए जाते हैं। और एक दूसरे को बधाई दी जाती है, और नगाड़ों के साथ उत्सव मनाया जाता है। जिसमें सभी वर्ग के लोग बहुत जोर शोर से इस त्यौहार को मनाते हैं।
लोहडी का अर्थ -पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है। लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
क्यों मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार इसकी भी कई कथाएं है। आइए जानते हैं ऐसी ही (कथाएं) कहानियों को -
भारतवर्ष में जितने भी त्यौहार मनाए जाते हैं। उनके पीछे कोई ना कोई कथाएं होती है। जिसका संबंध उस त्यौहार से होता है।
हर त्यौहार का अपना ही एक महत्व है। त्यौहार में व्यक्ति एक दूसरे से मिलता है, जिससे उनके बीच में प्रेम और सद्भावना बढ़ती है, एक दूसरे के प्रति विश्वास बढ़ता है, और एक दूसरे के साथ समय बिताने का अवसर मिल जाता है। भारत में ऐसे बहुत सारे त्यौहार जो एक दूसरे को मिलाते हैं। ऐसा ही त्यौहार है लोहड़ी का।
भगवान शिव और माता सती की कहानी(कथा) - कहते हैं दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योग अग्नि दहन की याद में यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहित स्त्रियों को मां के घर से भेंट दी जाती है। यज्ञ के समय जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया था, उससे क्रोधित होकर माता सती ने अपने आपको अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था। उनकी याद में भी लोहडी मनाई जाती है।
दुल्ला भट्टी की (कथा) कहानी - दुल्ला भट्टी पंजाब में रहते थे। मुगल शासक अकबर के समय लड़कियों को बलपूर्वक अमीरों को बेचा जाता था। उन लड़कियों को दुल्ला भट्टी ऩे योजनाबद्ध तरीके से आजाद कराया और उनकी शादी हिंदू रीति रिवाज से हिंदू लड़कों से करायी। दुल्ला भट्टी उस समय एक विद्रोही थे। उन्होंने इस कार्य को करके सभी का दिल जीत लिया। तब से लोहड़ी के त्यौहार में दुल्ला भट्टी गीत गाए जाते हैं और जश्न मनाया जाता है।
हो..............सुंदर मुंदरिये ! ..................
हो............ तेरा कौन बेचारा, .................
हो ............दुल्ला भट्टी वाला, ...............
हो............ दुल्ले घी व्याही, ..................
हो.......... ..सेर शक्कर आई, .................
हो.......... ..कुड़ी दे बाझे पाई, .................
हो............ कुड़ी दा लाल पटारा, ...............
भगवान कृष्ण की (कथा) कहानी - भगवान कृष्ण के बालकाल में कंस के द्वारा उनको मारने का प्रयास किया गया। जिसमें राक्षसी को भगवान कृष्ण को मारने के लिए भेजा गया। जिसका नाम लोहिता था। पर भगवान कृष्ण ने उस राक्षसी को खेल-खेल में मार दिया। लोहिता राक्षसी के नाम पर लोहड़ी त्यौहार का नाम रखा है। और कहते हैं इसी कारण लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है।
बुवाई और कटाई (कथा) कहानी - लोहड़ी त्यौहार पारंपरिक रुप से फसल की बुवाई और कटाई से जुड़ा एक विशेष त्यौहार है। इस दिन लकड़ियों को इकट्ठा कर उन पर आग लगाई जाती है, और उसके इर्द-गिर्द सभी लोग बैठकर दुल्ला भट्टी के प्रशंसक गीत गाते हैं, एक दूसरे को बधाई देते हैं और खुशियां मनाते हैं।
कुछ प्रसिद्ध लोकगीत - 'ओए.........,
होए..........,
होए..........,
बारह वर्षी खडन गया सी, खडके लेआंदा रेवड़ी.............
पंजाब का प्रसिद्ध त्यौहार है, और इसे बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। जिसका पंजाब में बहुत ही महत्व है। यह त्यौहार मकर संक्रांति के 1 दिन पूर्व मनाया जाता है। सूर्य अस्त होने के बाद सभी लोग एकत्रित होते हैं, और इस त्यौहार को मनाते है, जिसमें बच्चियों को भेंट दी जाती है।
लोहडी का अर्थ -पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है। लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
क्यों मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार इसकी भी कई कथाएं है। आइए जानते हैं ऐसी ही (कथाएं) कहानियों को -
भारतवर्ष में जितने भी त्यौहार मनाए जाते हैं। उनके पीछे कोई ना कोई कथाएं होती है। जिसका संबंध उस त्यौहार से होता है।
हर त्यौहार का अपना ही एक महत्व है। त्यौहार में व्यक्ति एक दूसरे से मिलता है, जिससे उनके बीच में प्रेम और सद्भावना बढ़ती है, एक दूसरे के प्रति विश्वास बढ़ता है, और एक दूसरे के साथ समय बिताने का अवसर मिल जाता है। भारत में ऐसे बहुत सारे त्यौहार जो एक दूसरे को मिलाते हैं। ऐसा ही त्यौहार है लोहड़ी का।
भगवान शिव और माता सती की कहानी(कथा) - कहते हैं दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योग अग्नि दहन की याद में यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहित स्त्रियों को मां के घर से भेंट दी जाती है। यज्ञ के समय जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया था, उससे क्रोधित होकर माता सती ने अपने आपको अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था। उनकी याद में भी लोहडी मनाई जाती है।
दुल्ला भट्टी की (कथा) कहानी - दुल्ला भट्टी पंजाब में रहते थे। मुगल शासक अकबर के समय लड़कियों को बलपूर्वक अमीरों को बेचा जाता था। उन लड़कियों को दुल्ला भट्टी ऩे योजनाबद्ध तरीके से आजाद कराया और उनकी शादी हिंदू रीति रिवाज से हिंदू लड़कों से करायी। दुल्ला भट्टी उस समय एक विद्रोही थे। उन्होंने इस कार्य को करके सभी का दिल जीत लिया। तब से लोहड़ी के त्यौहार में दुल्ला भट्टी गीत गाए जाते हैं और जश्न मनाया जाता है।
हो..............सुंदर मुंदरिये ! ..................
हो............ तेरा कौन बेचारा, .................
हो ............दुल्ला भट्टी वाला, ...............
हो............ दुल्ले घी व्याही, ..................
हो.......... ..सेर शक्कर आई, .................
हो.......... ..कुड़ी दे बाझे पाई, .................
हो............ कुड़ी दा लाल पटारा, ...............
भगवान कृष्ण की (कथा) कहानी - भगवान कृष्ण के बालकाल में कंस के द्वारा उनको मारने का प्रयास किया गया। जिसमें राक्षसी को भगवान कृष्ण को मारने के लिए भेजा गया। जिसका नाम लोहिता था। पर भगवान कृष्ण ने उस राक्षसी को खेल-खेल में मार दिया। लोहिता राक्षसी के नाम पर लोहड़ी त्यौहार का नाम रखा है। और कहते हैं इसी कारण लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है।
बुवाई और कटाई (कथा) कहानी - लोहड़ी त्यौहार पारंपरिक रुप से फसल की बुवाई और कटाई से जुड़ा एक विशेष त्यौहार है। इस दिन लकड़ियों को इकट्ठा कर उन पर आग लगाई जाती है, और उसके इर्द-गिर्द सभी लोग बैठकर दुल्ला भट्टी के प्रशंसक गीत गाते हैं, एक दूसरे को बधाई देते हैं और खुशियां मनाते हैं।
कुछ प्रसिद्ध लोकगीत - 'ओए.........,
होए..........,
होए..........,
बारह वर्षी खडन गया सी, खडके लेआंदा रेवड़ी.............
पंजाब का प्रसिद्ध त्यौहार है, और इसे बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। जिसका पंजाब में बहुत ही महत्व है। यह त्यौहार मकर संक्रांति के 1 दिन पूर्व मनाया जाता है। सूर्य अस्त होने के बाद सभी लोग एकत्रित होते हैं, और इस त्यौहार को मनाते है, जिसमें बच्चियों को भेंट दी जाती है।
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