Air Pollution Is A Slow Poison That Is Slowly Eliminating You (वायु प्रदूषण एक धीमा जहर है जो आप को धीरे-धीरे खत्म कर रहा है।)
इंसान को कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर फर्क पड़ता होता तो दिल्ली में यह देखने नहीं मिलता। सुप्रीम कोर्ट का आदेश पब्लिक ने नहीं माना, पटाखे भी फोड़े गए और बहुत जोरों से फोड़ें।
लगता है इंसान को अपने जीवन से प्यार नहीं है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है, जीवन मे इतनी सारी परेशानियां कौन झेलेगा, उससे अच्छा पटाखे फोड़ें, जिंदगी खुद फूट जाएगी।
लगता है इंसान को अपने जीवन से प्यार नहीं है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है, जीवन मे इतनी सारी परेशानियां कौन झेलेगा, उससे अच्छा पटाखे फोड़ें, जिंदगी खुद फूट जाएगी।
pollution |
ऐसा कहना तो नहीं चाहिए पर क्या करें, इंसान बहुत समझदार है, इतना समझदार है कि उसकी समझदारी की मिसाल इन्हीं बातों से ली जा सकती है, कि जिस बात के लिए उसको मना करो वह वही करता है, इसमें उसकी शान है और जब शान पर बात आ जाए तो आदमी कैसे चुप रह सकता है। पटाखे तो हम फोड़ेंगे दिवाली का मतलब ही पटाखा है, पटाखा नहीं तो कैसी दिवाली।
वैसे हमारे धर्म ग्रंथों में पटाखे का जिक्र तो नहीं है, पर क्या करें, हमें खुशी इन्हीं चीजों से मिलती है, जिसमें हमारा ही नुकसान होता है, हमें क्या फर्क पड़ता है कि कौन मरता है और कौन जीता है, हम तो जिंदा है ना, हम तो फोड़ेंगे फटाके पूरा मजा इसी जिंदगी में है।
वैसे हमारे धर्म ग्रंथों में पटाखे का जिक्र तो नहीं है, पर क्या करें, हमें खुशी इन्हीं चीजों से मिलती है, जिसमें हमारा ही नुकसान होता है, हमें क्या फर्क पड़ता है कि कौन मरता है और कौन जीता है, हम तो जिंदा है ना, हम तो फोड़ेंगे फटाके पूरा मजा इसी जिंदगी में है।
भारत में वर्ष 2015 में वायु जल और दूसरे तरह के कई प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा मौतें हुई थी। (Air Pollution) प्रदूषण की वजह से 25 लाख लोगों की मौत हो गई थी। लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात कही गई है।
खैर हमें इस से क्या फर्क पड़ता है, अगर फर्क पड़ता होता तो सुप्रीम कोर्ट की बात हम मान लेते। इसमें क्या होता है, हमारी जिंदगी तो निकल ही जाएगी, रही बात आने वाले पीढ़ी का जीवन, वह उनकी परेशानी है, हम तो मजे में हैं पर सुधारने की हम सोच भी नहीं सकते। जिंदगी का क्या भरोसा पटाखे फोड़ो और मजे लो।
वैसे पिछली दिवाली की अपेक्षा इस दिवाली काफी कम प्रदूषण हुआ कुछ लोग जो ज्यादा समझदार है। जिनको फिक्र है अपने समाज, अपने बच्चों की जो सुप्रीम कोर्ट का आदर करते हैं। जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की थोड़ी इज्जत तो रख ली और समाज के अच्छे लोगों के कारण इस दीवाली की रात को 23% कम प्रदूषण हुआ और सुबह करीब 14% कम प्रदूषण हुआ। हमें ऐसे व्यक्तियों का सम्मान करना चाहिए। कम से कम उन्होंने यह समझदारी दिखाई, जिसका फायदा सभी को होगा। (Air pollution in India)
वैसे कुछ लोगों की समझदारी से कोई फर्क नहीं पड़ना, फर्क तब पड़ेगा जब सब समझदारी दिखाएंगे, वैसे कुछ गलतियां हम करते हैं वो भी मजे के साथ और पूरा मजा लेकर। जब बच्चे को साइकिल देना चाहिए तो हम उसको मोटरसाइकिल देते हैं, क्योंकि इसमें हमारी शान है, इसमें हमारी अमीरी झलकती है। हम बाइक से जा सकते हैं पर हम कार से जाते हैं।
यह भी पढ़ें - फिटनेस बढ़ाएं पावर योग Enhance Fitness Power Yoga.
यह भी पढ़ें - फिटनेस बढ़ाएं पावर योग Enhance Fitness Power Yoga.
क्यों जाएं बाइक से, यह हमारी शान के खिलाफ है, सही बात है रुतबा और पैसा तो दिखाना ही पड़ेगा ना, वह तो दिखाने के लिए ही है कहते हैं। खरबूजे को देखकर खरबूजा भी रंग बदलता है, पर सब खरबूजे एक जैसे कोई भी रंग बदलने को तैयार नहीं और जो रंग बदलता है, उसको लोग मुर्ख बोलते हैं।
इस बात से हम खुश हो जाते, अगर भारत से ज्यादा कहीं दूसरे देश में वायु प्रदूषण से लोगों की मृत्यु होती, पर ऐसा नहीं है भारत पहले नंबर पर है, दूसरे नंबर पर चीन। इन बातों में भारत हमेशा पहले नंबर पर होता है क्योंकि इसमें मजा भी तो होता है, गंदगी में रहना और गंदगी करना हमारा स्वभाव है। और हम क्यों बदले, बदलना हमारा स्वभाव नहीं है। दुनिया की जितनी भी खराब चीज है उनको अपनाना ही हमारा मकसद है, क्योंकि हम बदलना ही नहीं चाहते। क्या करें यह हमारा स्वभाव है अगर हम साफ, सफाई, स्वछता से रहेंगे तो हमें नींद कैसे आएगी क्योंकि सुधरना तो हमारा स्वभाव नहीं है।
कहते हैं जो बदलता नहीं है वह मिट जाता है। चंद लोगों के प्रयास से देश नहीं बदल सकता, देश की परिस्थितियां नहीं बदल सकती, जब हर व्यक्ति प्रयास करता है तब कहीं जाकर देश बदलता है, वायु प्रदूषण कोई छोटी समस्या नहीं है, यह बहुत बड़ी समस्या है और इसको चंद लोग मिलकर हल नहीं कर सकते।
Air pollution in Delhi: Its Magnitude and Effects on Health
Air pollution in Delhi: Its Magnitude and Effects on Health
हमें पहले अपने घर की सफाई करना होगी, तब कहीं हम जाकर दुनिया की बात करेंगे। त्यौहार के नाम पर हम गंदगी फैलाते हैं, यह सब हम इसलिए करते हैं क्योंकि हमें दिखाना है, हमें कॉन्पिटिशन करना है दूसरे धर्म से।
पर धर्म यह नहीं सिखाता, अगर दूसरा गलती कर रहा है तो हम उससे बड़ी गलती करने को तैयार रहते हैं, गलती सुधारने को तैयार नहीं होते।
वैसे ही जैसे भेड़ को जिस रास्ते में ढकेल दो, उसी रास्ते में चलती जाती है, चाहे आगे गड्ढा क्यों ना हो, पर हम इंसान हैं पर इन सभी में सबसे समझदार इंसान हैं पर उसकी समझदारी उसको ही खा रही है, अब समझ मे यह नहीं आता, समझदार कौन है जानवर की इंसान।
दिखावा केवल इंसान करता है जानवर नहीं, अब आप खुद विचार कीजिए कि कौन है सबसे समझदार। वह जो शांत है या वह जो दिखावे के लिए बिना कपड़े नाच रहा है।
Comments
Post a Comment